सिर्फ सुना है कि ये जो कमबख्त भावनाएं होती हैं न , जरा से में आहत हो जाती हैं। उधर किसी ने कुछ ऊंचा , नीचा किया नहीं कि इधर हो गई भावनाएं आहत। ऐसा भी नहीं है कि एक बार आहत हो गईं , तो फिर साल-छह महीने की छुट्टी। इधर आहत होकर निपटे नहीं कि उधर फिर भावनाएं तैयार हैं आहत होने के लिए। कितनी बेशर्म हैं भावनाएं , जो इतनी - इतनी बार आहत होने के बाद भी हत नहीं होतीं। हमें पता ही नहीं चलता और हमारी भावनाएं आहत हो जाती हैं। क्या पता , हम सोते ही रह गए हों और उधर भावनाएं लहूलुहान हो गईं। सच कहें , तो मुझे कभी लगा ही नहीं कि मेरी भावना आहत भी हुई है। भला हो उन लोगों का , जो समय-समय पर बताते रहते हैं कि लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। कई बार कोशिश की। हफ्ते भर बाद किसी ने बताया कि भावनाएं आहत हो गई हैं। कोई साफ संकेत तो हमें नहीं मिल रहे , मगर कहा है , तो जरूर हो गई होगी। लोग भला झूठ क्यों बोलेंगे ? भावनाओं को समझना हर एक के बस की बात नहीं है। कम से कम मेरे जैसे आम आदमी के लिए तो बिल्कुल नहीं। किसी ने एक बार पूछ लिया था कि भावना कभी आहत हुई या नहीं , तो गहन-गंभीर चिंतन के बाद हमने उ
बेवजह खुश रहिये, वजहें बहुत महंगी है..!❤️