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पागल😊


“कितनी देर हो गई तुम्हे यहाँ?” उसने आते ही पूछा. मैंने उसे आगे चलने का इशारा कते हुए कहा “पता नहीं मैं तो ध्यान में मगन था”.

क्या? उसने मुड़ कर पूछा तो उसे देख कर मुझे ‘खुबसूरत’ शब्द याद आया और अभी यहीं खड़े होकर उसे कह देने का मन किया की किसी ऐसे ही पल के मैंने लिखा था ‘देखूं तुम्हे और देखता रहूँ/छू लूँ तुम्हे और महकता रहूँ’. पर सब कुछ कह कहाँ पता हूँ मैं. मैं चलते हुए उसके साथ हुआ और कहाँ “इंतजार करना ध्यान करने जैसा ही है इसमें भी आपको आसपास का कुछ नहीं दिखता, बस किसी एक बिंदु पर आंखे टिक जाती है और दिमाग में बस एक बात होती है कि अभी वो दिख जायेगा. मैं तो कहता हूँ की जो ध्यान नहीं लगा पाते उन्हें इंतजार करना चाहिए.”

“पागल” उसने कहा और हम जाने कहाँ की तरफ चल पड़े. थोड़ी दूर चलने पर जूस वाला दिखा और उसने उसे पीने के लिए कहा, हम जूस के आने का इंतजार करने लगे.

वक्त बहुत ढीठ है, हमेशा उसका उल्टा ही करता है जो इससे कहा गया हो. जब मैं ‘ध्यान’ में था तो ये सो गया था, आलस के मारे इत्ता धीरे हुआ था कि मुझे लग रहा था की कहीं मर तो नही गया. और अभी जब वो पास में बैठी है तो जैसे इसके पीछे कुत्ते पड़ गये हैं और ये अपनी आजतक की सबसे तेज़ रफ्तार से भाग रहा हो.

उसने मेरा ध्यान वक्त के पीछे भाग रहे कुतों से हटाया, “तो फिर बताओ, कैसे आना हुआ?” 

सच उसको पता था “और मैं सच कहकर ‘सबकुछ खुबसूरत से’ को खत्म नहीं करना चाहता, और झूठ बोलने मैं इतनी दूर आया नहीं था. मैंने थोडा सोचा ठीक से बैठा और इतनी देर में दिमाग ने अपना काम पूरा कर लिया. “2-3” काम थे यहाँ, तो बस उसी के लिए एक तो तुझे पता ही है, दूसरा भी तुझे पता है और तीसरा तेरे लिए मैंने एक ही साँस में ये बात खत्म कर दी और उसे देखने लगा.

‘ये सुन वो थोडा सा हंस दी.

फिर थोड़ी देर हमने वहीँ बैठ कर बातें की या यूँ कहूँ उसने कहा और मैंने सुना, मुझे उसे सुनना शुरू से ही पसंद है और वो मेरे पास बैठी थी, मेरे अंदर ख़ुशी का जो ज्वार फूटा है, अगर कोई इसे माप ले तो अगले साल दुनिया के सबसे ख़ुशी आदमी में मेरा वर्ल्ड रिकॉर्ड बन जाएगा.

कितनी फिल्मी बातें लिखता हूँ और सोचता हूँ मैं, मगर यही सच है, क्योंकि इस वक्त दुनिया में मुझे बस दो ही इंसान लग रहे हैं, वो और मैं.

अब वक्त भी कितनी तेज़ भाग सकता था, उसे कुत्तों ने पकड़ ही लिया और कर दिया लहूलुहान. समय समाप्त.

सब कुछ कहाँ कह पाता हूँ मैं......


©Shivam Pandit #_shivvaam_

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समझ और परख

कल इंस्टाग्राम पर पढ़ा था, ज़िन्दगी में जब तक जिंदा हैं परेशानियां रहेंगी, बस शक्ल और उसके मायने बदल जाएंगे। मैं इस बात से सहमत भी हूँ, पर इन परेशानियों को समझ लेने या स्वीकार लेने की हिम्मत भी होनी चाहिए। हम किसी के चले जाने से इसलिए घबरा जाते हैं क्योंकि इसके बाद कि तैयारी हमने कहीं सीखी ही नहीं। हमें बस इतना पता है कि साथ रहने के लिए हम क्या क्या कर सकते हैं। मेरे साथ भी ऐसा ही है, मेरे पास समय का बस एक पक्ष ही है, जिसमे मुझे लगता है मैं सब ठीक कर लूंगा, पर इससे कम ही रहा। मैं कई बार अपने फैसलों पर गौर करता हूँ तो तब सही लग रहे सारे पॉसिबल फैक्ट्स अब बेकार लगते हैं। मेरा मन अजीब सा हो गया है। मुझे मालूम है कि मेरा मन शांत नहीं है लेकिन वो एक टक किसी चीज़ को देखकर सम्भल रहा है, किसी निश्चित दूरी को अंत तक समझ कर समय काट रहा है, सोच रहा है

रात

रात के 2 बजने को हैं और मैं सोने की बजाय छत पर मुंडेर पर पैर लटका कर बैठा हूँ। रेलवे स्टेशन भी घर के काफ़ी पास में है तो ट्रैन की आवाज़ें आ रही हैं। कहीं दूर किसी गली में कुत्ते के भौकने की आवाज़ आ रही हैं। शायद पास में ही किसी के यहां अखण्ड रामायण पाठ हो रहा है मगर इन सबसे अलग और सुकून देने वाली ठंडी और शांत हवा भी चल रही है जो शरीर को उसके ठंडे होने का एहसास करा रही है, और मैं भी महसूस कर रहा हूँ। मेरे चारों तरफ बस हल्की सी रोशनी है मैं अक्सर आधी रात को अपनी छत पर आकर बैठ जाता हूँ और खाली मन के साथ बैठा रहता हूँ। ना कुछ सोचता हूँ ऐसा जो मुझे परेशान करे बस ठंडी हवा को अपने अंदर निकलता रहता हूँ और ऐसा करने से कुछ टाइम के लिए ही सही पर हाँ इससे मुझे सुकून मिलता है। चलिए अब में छत से नीचे जा रहा हूँ। नींद तो अभी आएगी नहीं पर फ़िर भी सोने का प्रयास करूँगा और आखिर में सो जाऊंगा। © - शिवम

आज मैं अपने बारे में बताता हूँ

कितने लोग कहते होंगे ना कि मैं सब समझता हूँ, कितने लोग कहते होंगे ना कि सब जानता हूँ मैं, कितने लोग कहते होंगे ना कि मैं सब जैसा नहीं हूँ, आज मैं तुम्हें अपने बारे में बताता हूँ मैं सब कुछ नहीं समझता हाँ, पर समझने का प्रयास करता हूँ कि वो सब समझ सकूँ जो समझने जैसा है।। मैं सब कुछ नहीं जानता मैं नहीं जानता किसी को रोकना मैं नहीं जानता रूठे हुए को मनाना मैं नहीं जानता मन के भाव व्यक्त करना मैं नहीं जानता दुःखी को उसके दुःखों से निकलना।। मैं सब जैसा ही हूँ मैं रोज़ गलतियाँ करता हूँ और करता हूँ उन्हें ना दोहराने का भरसक प्रयास क्योंकि ये ही सिखाती हैं कि फिर से क्या नहीं करना है तो कैसे प्रयास करना छोड़ दूँ मैं...!!