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सालों जिये लम्हो में से कुछ यादें उठा ली, लफ़्ज़ों में पिरोया तो किस्सा बन गया।

  सालों जिये लम्हो में से कुछ यादें उठा ली, लफ़्ज़ों में पिरोया तो किस्सा बन गया। याद है वो लाइब्रेरी की क्लास जाते वक्त लाइन लगाते थे, सारे दोस्त ग्रुप बनाकर एक ही टेबल पर बैठ जाते थे। याद है कंप्यूटर क्लास जहाँ जाने से पहले जूते उतारा करते थे, टीचर को अनसुना करके अपने मन की चीज़ें चलाया करते थे। याद है...... लंच में पेड़ के नीचे नींबू पानी बनाना... टीचरों के मना करने पर भी quaters में जाके लंच खाना...... छुट्टी के टाइम नारे लगाना याद है जब स्कूल में थे हम।। अपना भी अलग बैंड था बोतल माइक,किताब को हारमोनियम गाने को एक से एक सिंगर और तबले के नाम पर सिर्फ बेंच था क्लास में पीछे बैठ के ना जाने कितने खेल खेले थे, बुक क्रिकेट,चिड़िया उड़ और उड़ाने के नाम पर क्या क्या उड़ा देते थे। अपनी वो क्लास,अपना वो प्लेग्राउंड सब पीछे छूट गया है, याद है वो पहला दिन? जब रोते हुए स्कूल गए थे हम। जो स्कूल बेकार लगता था उसी की याद आती है..., जब देखते किसी को स्कूल जाते हुए तो आंखे भर आती है। याद है जब स्कूल में थे हम जाते जाते हम इतना ही कहेंगे स्कूल की क्लास में तो नही, एक दूसरे की यादों में जरूर रहेंगे हम।।