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Showing posts from May, 2021

रिश्ते और झूठ

ये मैं हूँ (कहीं खोया हूँ शायद) आज कल के रिश्ते झूठ पर टिके हुए है, जहाँ आपने जरा सा सच बोला इनका डगमगाना शुरू | कितना सही फिट बैठता है न ऊपर वाला वाक्य आज कल के रिश्तों पर जब तक आप सामने वाले से उसे खुश रखने के लिए झूठ बोलते रहोगे या उसके झूठों को सच मानते रहोगे तब तक वो रिश्ता एक दम सुरक्षित है| उसके टूटने का कोई खतरा नहीं है| वहीँ आपने अगर सच बोल दिया या उसके झूठ पर आपको यकीं नहीं हुआ तो आपके मिठास भरे रिश्तें में दरार आ जाएगी, गलतफेमियां जगह बना लेंगी और इसी की जगह आप उसकी कही हर बात पर यकीं करते रहते है और उसे खुश रखने के लिए आप संभव झूठ बोल रहें है तो आप उसको समझते है| कई बार तो आप उसके झूठ को भी सच मान बैठते है सिर्फ इसलिए क्योंकि आप उस रिश्ते को खोना नहीं चाहते|उसके झूठ पर आपने उसे टोक दिया की नहीं ऐसा नही ऐसा था/है तो फिर आपकी सोच गिरी हुई, आपसे घटिया इंसान, नकारात्मक सोच रखने वाला उसने कभी देखा नहीं होगा और ये सिर्फ़ इसलिए क्योकि अपने उसके झूठ में थोडा सा सुधार कर दिया| यदि आपके साथ कभीं ऐसा हुआ हैं और आप उस रिश्ते को बचाने की जद्दोजहद में है और ऐसा सिर्फ आप ही कर रहे है तो,

*टहलते-टहलते*

आज लाइट नही है तो छत पर टहलने आया और क्या देखा कि चाँद अकेले अपनी महफ़िल में खुश है। आज बाकि दिनों के मुकाबले आज कुछ ज़्यादा चमक है चाँद में। ऐसा तब होता है जब आप ये समझ लेते हो कि आपके पास लोगों की भीड़ होकर भी आप अकेले हो इसलिए आप उनके बीच में तो खुश रहते ही हो बल्कि इसके साथ साथ आप उनकी गैरमौजूदगी में भी आप खुद को ऐसा ही पाते है जैसा उनके बीच। लेकिन कहीं न कहीं ये भी ठीक नही समझता मैं क्योंकि आपके पास कुछ ऐसे लोगों का होना ज़रूरी है जो आपको दिन में दो-तीन बार कॉल करें बिना किसी वजह के इनमे आपका मित्र हो सकता है आपका कोई प्रिय भी हो सकता। जैसे कि में अभी अपने दोस्त से ये लिखते लिखते बात कर रहा हूँ। आप भी कीजिये अच्छा लगेगा खुद को थोड़ा हल्का महसूस करेंगे

सालों जिये लम्हो में से कुछ यादें उठा ली, लफ़्ज़ों में पिरोया तो किस्सा बन गया।

  सालों जिये लम्हो में से कुछ यादें उठा ली, लफ़्ज़ों में पिरोया तो किस्सा बन गया। याद है वो लाइब्रेरी की क्लास जाते वक्त लाइन लगाते थे, सारे दोस्त ग्रुप बनाकर एक ही टेबल पर बैठ जाते थे। याद है कंप्यूटर क्लास जहाँ जाने से पहले जूते उतारा करते थे, टीचर को अनसुना करके अपने मन की चीज़ें चलाया करते थे। याद है...... लंच में पेड़ के नीचे नींबू पानी बनाना... टीचरों के मना करने पर भी quaters में जाके लंच खाना...... छुट्टी के टाइम नारे लगाना याद है जब स्कूल में थे हम।। अपना भी अलग बैंड था बोतल माइक,किताब को हारमोनियम गाने को एक से एक सिंगर और तबले के नाम पर सिर्फ बेंच था क्लास में पीछे बैठ के ना जाने कितने खेल खेले थे, बुक क्रिकेट,चिड़िया उड़ और उड़ाने के नाम पर क्या क्या उड़ा देते थे। अपनी वो क्लास,अपना वो प्लेग्राउंड सब पीछे छूट गया है, याद है वो पहला दिन? जब रोते हुए स्कूल गए थे हम। जो स्कूल बेकार लगता था उसी की याद आती है..., जब देखते किसी को स्कूल जाते हुए तो आंखे भर आती है। याद है जब स्कूल में थे हम जाते जाते हम इतना ही कहेंगे स्कूल की क्लास में तो नही, एक दूसरे की यादों में जरूर रहेंगे हम।।

जीवन का सुकून

डिलीट करें, अनफॉलो करें, अनफ्रेंड करें, ब्लॉक करें, या मिटा दें ऐसे किसी भी व्यक्ति से या किसी ऐसी चीज़ से खुद को डिसकनेक्ट करले जो आपसे आपकी शांति, आपका प्रेम और आपकी ख़ुशी आपसे छीन रहा हो, और ऐसा केवल सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी करें क्योंकि आपको अपने आस-पास ऐसे लोगों की कतई जरू रत नही है जो आपको खुश और बढ़ता हुआ नहीं देख सकते | बाकी जिंदगी मजे से जियें लोग तो आते जाते रहते है लेकिन आप कहीं नही जायेंगे| अपने आत्मसम्मान और अपनी मार्जियों के मुताबिक जियें लोगों का काम है लोग तो कहेंग ही| बाकि मस्त रहिये स्वस्थ रहिये.....!!💗

जिंदगी के मायने

जिंदगी को इतना भी कॉम्प्लीकेट मत करिए की जीना ही भूल जाएँ...कभी अकेले बैठें तो अपने मन से भी पूछ लें कि वो क्या चाहता है,किस पागलपन में वो सुकून पाता है,किस दरख्त पर चढ़ जाना चाहता है...कभी अपने ख़ुद के मन से बातें करके देखिये,पता लगेगा की उसे बस एक बैलेंस चाहिए जिंदगी में,कोई अंतहीन रेस नही.❤ Pic credit- Click by Me