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Showing posts from June, 2021

मुस्कुराना जरूरी है.❤

ये बात इस पर है कि आप समस्याओं में भी मुस्कुरा सकते है लेकिन आप मुस्कुराते नहीं है क्यूँकी आप समस्याओं से घिरे हुए है....मुस्कुराइए मुस्कुराना बेहद जरूरी है. प्रिसिद्ध वेब सीरीज "दी फॅमिली मैन" देख रहा था यूँ तो देख चूका हूँ इस बार दूसरी दफा देख रहा हूँ  उसमे श्रीकांत तिवारी के जीवन में कितनी समस्याएं थी ये तो आपने ध्यान ही दिया ही होगा....उसकी पत्नी से उसकी नोक-झोंक होती रहती है...उसका लड़का उसे ब्लैकमेल करता रहता है...बेटी उसका फ़ोन नहीं उठाती. वो परिवार को समय देने के लिए अपनी एजेंट वाली जॉब छोडकर 9-5 कॉर्पोरेट जॉब करना स्टार्ट कर देता है....उसकी लाइफ में इतनी सारी समस्याएं होने के वाबजूद भी उसके चेहरे की मुस्कान नहीं गयी. समस्याएं बड़ी नहीं होती, उन्हें बड़ा हम बनाते हैं. इसलिए समस्याओं को बड़ा नही खुद को बड़ा बनाइये समस्याओं के सामने और उनका मुस्कुरा कर सामना करो. ज़िंदगी है तो दिक्कतें भी आएंगी और इन्ही दिक्कतों का सामना करने के बाद इंसान मजबूत और नए नए अनुभव सीखता है जो जीवन जीने में काफ़ी हद तक मदद करते हैं. हम ज़्यादा कुछ नहीं हो तो फिल्मी दुनिया की कुछ चीज़ें तो असल दुनिया मे

सूरत और सीरत

सुंदरता सूरत में नहीं सीरत में होती है और सीरत का श्रृंगार , शुद्धता, सरलता, और शीतलता से होता है और सूरत नज़रों का धोखा है, और सीरत जीवन संवारने का मौका है, सूरत तब तक सुंदर है जब तक हम पर नज़र है और सीरत अमर है, सूरत एक दिन खाक में मिल जानी है लेकिन सीरत हमेशा के लिए दिलों में खिल जाती है, इसलिए सूरत को नहीं सीरत को संवारिये और अपनों के दिलों में अपनी जगह बनाइए.. बाकी कान्हा जी देख लेंगे.❤️ ✍️ शिवम् ( #_shivvaam_ )

बात दोस्ती की

बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हम सबको एक दोस्त की जरुरत होती है जो हमारे हर हार जीत में साथ चल सके. जिन्दगी की राह में हमें हर पड़ाव पर कई दोस्त मिलते हैं.  वैसे दोस्ती करना बहुत आसान होता है लेकिन उसे निभाना उतना ही मुश्किल. मुझे पहले केवल एक ही रिश्ता ऐसा समझ आता था जो हम बचपन में विरासत में प्राप्त नहीं करते बल्कि जो हम ख़ुद बनाते है  क्यूँकी हम अपने रिश्तेदार नहीं चुन सकते लेकिन अपने दोस्त चुनने का हक़ मिलता है और शायद यहाँ तो हमारी खुद की इच्छा के अनुसार हम काम कर सकते है, लेकिन अब बढ़ते नैतिक मूल्यों ने दोस्ती के मापदंड ही बदल दिए है.... मेरी माने तो राम-सुग्रीव की दोस्ती को भी सच्ची मित्रता नही कह सकते क्यूँकी वहां भी एक समझौता हुआ था की राम, बाली को मारकर हराएंगे और सिंघासन मिलने पर ही सुग्रीव् माता सीता को ढूंढने में मदद करेंगे...अगर ये मित्रता है तो समझौते की जरुरत क्या थी  और यह समझौता था तो दोस्ती कहाँ थी...? सच्ची दोस्ती तो कृष्णा-सुदामा के बीच थी, जिसमे लेन-दें और समझौते के भाव से कहीं ज्यादा पवित्र और उजली मित्रता का भाव था..अपनी जीवनसंघनि के बार-बार कहने पर भी सुदामाँ चाहकर भी क

बाँटना बटोरना

ये बात इस बारे में है कि आप कुछ कर सकते हैं कभी-कभी किसी के लिए, लेकिन आप करते नही क्यूँकी आप करना नही चाहते. हम ये सोच नही पाते कि इंसान होना बड़ी बात है, और उससे भी बड़ी बात है इंसान बने रहना. आप सक्षम हो या बने हो, उसमें बहुत सारे लोगों का योगदान होता है जिन्हें शायद हमने नोटिस भी न किया हो...जैसे स्कूल का चौकीदार या बस का ड्राइवर, सफ़ाई कर्मचारी या अन्य, आपके आसपास वाले लोग जिन्होंने कहीं न कहीं हमें इस लायक बनने के सफ़र को आसान बनाया होगा. और अगर किसी भी तरह से आप क़ाबिल हो, तो दूसरों की मदद करना और वो भी निस्वार्थ भाव से, हमारा फ़र्ज़ बनता है. जो मिला है, वो वापस करना भी आना चाहिए. सिर्फ बटोरने भर को जीना कहते तो क्या ही बात होती. बल्कि कुछ बाँटना भी आना आवश्यक है. एक मैडम है, पहचान की, काफ़ी सरल स्वभाव है उनका, वो कभी गाइड या सलाह देने से मना नही करती और संभवतः हर मदद करती है. और सही रास्ता भी सुझाती हैं अपने अनुभव के आधार पर. वह पेशे से शिक्षक है तो कभी-कभी गरीब बच्चों को या मुफ्त में पढ़ा देती है। आप किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हों, किसी की मदद कर सकते है तो ज़रूर करें। खुद मुझसे कभी-कभ