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पागल😊

“कितनी देर हो गई तुम्हे यहाँ?” उसने आते ही पूछा. मैंने उसे आगे चलने का इशारा कते हुए कहा “पता नहीं मैं तो ध्यान में मगन था”. क्या? उसने मुड़ कर पूछा तो उसे देख कर मुझे ‘खुबसूरत’ शब्द याद आया और अभी यहीं खड़े होकर उसे कह देने का मन किया की किसी ऐसे ही पल के मैंने लिखा था ‘देखूं तुम्हे और देखता रहूँ/छू लूँ तुम्हे और महकता रहूँ’. पर सब कुछ कह कहाँ पता हूँ मैं. मैं चलते हुए उसके साथ हुआ और कहाँ “इंतजार करना ध्यान करने जैसा ही है इसमें भी आपको आसपास का कुछ नहीं दिखता, बस किसी एक बिंदु पर आंखे टिक जाती है और दिमाग में बस एक बात होती है कि अभी वो दिख जायेगा. मैं तो कहता हूँ की जो ध्यान नहीं लगा पाते उन्हें इंतजार करना चाहिए.” “पागल” उसने कहा और हम जाने कहाँ की तरफ चल पड़े. थोड़ी दूर चलने पर जूस वाला दिखा और उसने उसे पीने के लिए कहा, हम जूस के आने का इंतजार करने लगे. वक्त बहुत ढीठ है, हमेशा उसका उल्टा ही करता है जो इससे कहा गया हो. जब मैं ‘ध्यान’ में था तो ये सो गया था, आलस के मारे इत्ता धीरे हुआ था कि मुझे लग रहा था की कहीं मर तो नही गया. और अभी जब वो पास में बैठी है तो जैसे इसके पीछे कुत्ते पड़ ग

कमबख्त भावनाएं

  सिर्फ सुना है कि ये जो कमबख्त भावनाएं होती हैं न , जरा से में आहत हो जाती हैं। उधर किसी ने कुछ ऊंचा , नीचा किया नहीं कि इधर हो गई भावनाएं आहत। ऐसा भी नहीं है कि एक बार आहत हो गईं , तो फिर साल-छह महीने की छुट्टी। इधर आहत होकर निपटे नहीं कि उधर फिर भावनाएं तैयार हैं आहत होने के लिए। कितनी बेशर्म हैं भावनाएं , जो इतनी - इतनी बार आहत होने के बाद भी हत नहीं होतीं।     हमें पता ही नहीं चलता और हमारी भावनाएं आहत हो जाती हैं। क्या पता , हम सोते ही रह गए हों और उधर भावनाएं लहूलुहान हो गईं। सच कहें , तो मुझे कभी लगा ही नहीं कि मेरी भावना आहत भी हुई है। भला हो उन लोगों का , जो समय-समय पर बताते रहते हैं कि लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। कई बार कोशिश की। हफ्ते भर बाद किसी ने बताया कि भावनाएं आहत हो गई हैं। कोई साफ संकेत तो हमें नहीं मिल रहे , मगर कहा है , तो जरूर हो गई होगी। लोग भला झूठ क्यों बोलेंगे ? भावनाओं को समझना हर एक के बस की बात नहीं है। कम से कम मेरे जैसे आम आदमी के लिए तो बिल्कुल नहीं।       किसी ने एक बार पूछ लिया था कि भावना कभी आहत हुई या नहीं , तो गहन-गंभीर चिंतन के बाद हमने उ

#प्रोपोज़_डे

बात बस इतनी सी है कि जो मन में है वो कह देना ज़रूरी है...कितनी ही उम्र हम गुज़ार देते हैं कई बातें मन में रखकर जीते हुए, जो कभी कहते नहीं.. जो नापसंद हैं उन्हें भी नहीं कहते, और जो पसंद हैं उन्हें भी नहीं कहते; जबकि ज़रूरी है कि कह दिया जाए वो सब जो आप कहना चाहते हैं..हर डर से आगे बढ़कर, हर संकोच से जूझकर वो बोलना अहम है जो ज़रूरी है. और खासकर तब जब कोई अच्छा लगे, कोई भा जाए जी को, या कोई दिल में घर कर ले. हमेशा कह देना चाहिए, और बता देना चाहिए मन की बात, क्यूँकि कहने से ही सामने वाले को पता लगेगा कि दिल में क्या है आपके. बस इतना भर कर लें कि कह देने की आदत बना लेंगे तो कितने ही काश ज़िन्दगी में कम हो जाएंगे... बस इतनी भर हिम्मत जुटा ली तो बहुत से बोझ उतर जाएंगे जो दिल पर हैं..क्या पता कुछ अच्छा ही हो जाए. हम मन नहीं पढ़ सकते, कहना, बताना, और जताना ज़रूरी है इसीलिए हर बात को, प्यार को.❤️

सवाल

तुम्हें पता है मैं तुम्हे याद करता हूँ ये बताना पड़ेगा क्या? मैं अभी भी मोहब्बत करता हूँ ये जताना पड़ेगा क्या? बात करने का मन करता है उसके लिए मुझे कॉल या मैसेज करना पड़ेगा क्या? तुम भूली तो नही होगी मुझे ये मुझे पता करना पड़ेगा क्या? वैसे तुम्हें पता है एक उम्र के बाद रिश्ते इज़हार के मोहताज़ नहीं रहते हैं पूछने बताने की ज़रूरत है क्या? फ़िर भी एक सवाल कभी मैसेज करूँ तो, जवाब दोगी क्या? ✍️शिvam😀

#कमबख्त_ख़्याल

क्या होगा? कब होगा? कैसे होगा? इस कशमश में रात गुज़र रही है... हर ख़्वाब... बिखर रहा हैं बस निराशा ही गले लग रही है.. अब तो खुद को, मैं निकम्मा लगता हूँ शायद पर हूँ नहीं, ये में जानता हूँ... कब मेहनत रंग लाएगी, कब किस्मत पलटेगी बस इन्हीं सवालों में... ये बची हुई रात कटेगी... कब तक लोगों में बैठूं झूठी मुस्कान लिए कब तक खुद को.. दिलाशा दिलाऊँ.. मेरे तो कहें लोग शब्द नहीं समझते किसे अपने मन की व्यथा सुनाऊँ... शाम तो दोस्तों में बीत जाती है.... तब ऐसा कोई... ख़्याल नही आता... लेकिन रात के अंधेरे में ये दिमाग से भगाने पर भी नही जाता... ✍️शिवम☺️ © Shivam Pandit   #_shivvaam_

पुराने घर

आज सोशल मीडिया(instagram) इस्तेमाल कर रहा था तभी एक पोस्ट दिखी जिसमें ये तस्वीर थी और पूछा था कि आपके यहाँ इसे क्या कहते हैं? पुराने घरों में ये सामान रखने का सर्वसुलभ स्थान होता था..अब नए घरों में इसकी जगह ड्रेसिंग टेबल और डिज़ाइनर अलमारियों ने ले ली है। इसको हमारे यहाँ आम भाषा में 'आरो' कहते हैं. जिसे अभी नए मकानों में अलमारी बनाई जाती हैं उसी तरीके से इसके लिए जगह छैक(छोड़) देते थे. अब आप बताइए आपके यहाँ इसे क्या कहते हैं? © Shivam Pandit   #_shivvaam_

स्कूल और यादें

आज शाम जनरल स्टोर पर गये रतलामी सेव लेने, सेव भाजी खाने का मन था आज वहाँ हमे हमारी प्रिय आलू भुजिया रखी दिखी जिन्हें हम अपने स्कूल के समय में जब हम 11वीं और 12वीं में थे तब अधिकतर खाया करते थे. इसे देखकर खाने का मन हुआ और रतलामी सेव के साथ-साथ एक पैकेट इसका भी ले ही लिया. जब 11वीं और 12वीं में थे तब जब भी क्लास से बाहर जाना होता था या ब्रेक होता था तब हम सबसे पहले सलीम अंकल के पास पहले जाते बाकि जगह बाद में और यूँ मान लीजिये की एक पैकेट और लोग 8 जैसे मंदिर में ठाकुर जी का प्रसाद मिलता है उसी तरीके से हम सब आलू भुजिया खाते किसी को मिल गई तो ठीक वरना एक दुसरे से छीन रहें हैं किसी को बाद में खाली पैकेट दे देते थे. लंच के साथ जब तक आलू भुजिया न खाते तब तक हमारा लंच पूरा सा ही नही लगता था. एक व्यक्ति जाता और आलू भुजिया की एक दर्जन वाली पूरी लाइन गले में माला बनाकर ले आता था और फिर होती थी एक पैकेट पाने के लिए जंग-ए-आलू भुजिया. आज ये देखकर स्कूल, कॉरिडोर, फिजिक्स लैब, क्लासरूम, काल्समेट्स, और आलू भुजिया सब याद आ गये और सबसे ज्यादा टीचर जो पढ़ाने के साथ साथ फील करवा देते थे. उनके समझाने के उदा