कैसा लगा मेरा दोस्त बनकर?
जब पहली बार मिले थे, तब क्या सोचा था मन में? "यार बनेगा?" या "परेशान करेगा हर क्षण में?" जब मेरी फ़ालतू बातें सुनी, तब हँसी आई थी या तरस आया था? सच-सच बता, दिल से सुना था या दिमाग चकराया था? मैंने जो राज़ बताए थे, क्या तूने संभाल के रखे? या अगले दिन तेरे मज़ाक का हिस्सा बनके बिखर गए सब पत्ते? जब लड़ाई हुई थी हममें, क्या सच में तू रूठा था? या बस "ego" के नाम पर थोड़ी सी दूरी का बहाना था? कभी तुझसे बिना बात घंटों बकबक की, क्या दिल से सुनी थी या कानों में रूई ठूसी थी? जब तू उदास था और मैंने जोक मारा था, तब चिढ़ गया था या अंदर ही अंदर थोड़ा मुस्काया था? तेरे हर "कहाँ है बे?" के जवाब में "यहीं हूँ रे!" कहा, क्या तूने भी कभी वैसे ही इंतज़ार किया, जैसे मैंने किया? अब जब ये पूछ रहा हूँ — कैसा लगा मेरा दोस्त बनकर? क्या बोझ सा लगा मैं कभी? या थोड़ी राहत, थोड़ा सा घर जैसा महसूस हुआ कभी? तो बता ना यार, कैसा लगा मेरा दोस्त बनकर? कभी सिरदर्द लगा, कभी दिल का चैन? या फिर बस एक 'थोड़ा पागल लेकिन अपना' इंसान? - तू बता, तुझ पे छोड़ दिया सारा हिसा...