राधे कृष्ण
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कृष्ण के कई रूप थे...चाहे वो नटखट बालगोपाल हों, माखनचोर हों, मुरलीधर हों, गिरधारी हों, कंस के काल हों, कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी हों या फिर गीता के उपदेशक...
कृष्ण के बगल में चाहे हमेशा रुक्मणि और सत्यभामा रहीं हों, उनके हृदय में सिर्फ राधा ही बसती हैं...इसीलिए तो जब उद्धव जी जब विद्या को सर्वश्रेष्ठ बता रहे थे और अध्यात्म के गीत गा रहे थे कृष्ण के सामने, तब कृष्ण उन्हें प्रेम समझाने का प्रयास कर रहे थे, और बोले कि 'मोहे बृज बिसरत नाहीं उद्धव भैया'...
जब उद्धव जी ने कृष्ण के नेत्रों से झरते हुए आंसू देखे, और पूछा कि ऐसा क्या है खास है प्रेम में; तो कृष्ण ने क्या कहा मालूम नहीं, लेकिन एक गीत है जो शायद कृष्ण का जवाब हो:
"ये तो प्रेम की बात है ऊधौ, बंदगी इतनी सस्ती नहीं है...
यहाँ दम-दम में होती है पूजा, लौ लगाने की फुर्सत नहीं है"
आप में से कइयों ने सुना होगा, जिन्होंने नही सुना; वो कम से कम एक बार जरूर सुनें.
आज एक बात महसूस की कान्हा अपने भक्त को कब निराश नही देख सकते.
राधा के बिना कृष्ण का कोई मोल नहीं हैं, और राधे-कृष्ण में ही सम्पूर्ण संसार का सार है जो सिर्फ़ प्रेम है.
राधे राधे

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