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लिखना सुकून देता है मुझे

कभी कभी सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति भी कितना नकरात्मक हो जाता है ये आज मैंने महसूस किया! जब  आपको समझने वाला हो ही न और ना ही समझाने वाला लेकिन ऐसे समय पर किसी ऐसे ही  व्यक्ति की जरूरत होती है जो आपको आपको समझाये और आपके बिना कुछ बोले आपके मन की पीड़ा को भी समझ सके पर जब आप ऐसी पीड़ा में होते हो तो कोई नहीं होता क्यूँकी उसका होना और उस वक़्त उस जगह होना मायने रखता है क्यूँकी आप चाहते हो लिपटकर रोना और  बस रोना बिना कुछ बोले बस रोना!

काश मेरे पास ऐसा व्यक्ति हर समय और हर उस जगह मौजूद रहें जहाँ मुझे उसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता हो, मुझे उसे कुछ कहने की जरूरत न पड़े वह वो सब समझे जो मैं कहना तो चाहता हूँ  पर कह नहीं पाता हूँ क्यूँकी मुझे कहना नहीं आता और जब मैं कह नही पाता या कोई  नहीं होता उस वक़्त मैं मेरा पसंदीदा काम करता हूँ! मैं उस वक़्त लिखता हूँ वो सब जो मैं किसी से कह नहीं पता या कहना नहीं चाहता!

रोने और बहुत सारा दुःख मनाने के बाद मैं फिर से पहले की तरह हो जाता हूँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं है इस उम्मीद से की जैसे फिल्मों में अंत में सब ठीक हो जाता है  वास्तविक जीवन में भी हो जायेगा पर ऐसा हालाँकि होता नहीं है!

खैर उम्मीद पर तो दुनिया कायम और और हम उसी दुनिया का अभिन्न भाग इस दुनिया वैसा हुआ ही कब है जैसा हम ने चाहा है क्यूँकी अगर ऐसा हो गया तो फिर दुनिया  में रहने का आनन्द ही समाप्त हो  जाएगा!

मैं क्या लिख रहा हूँ ये मुझे खुद समझ नहीं बस लिख रहा हूँ जिससे मन हल्का कर सकूं! जब कोई नहीं होता तब मुझे लिखना उतना ही सुकून देता है जितना की राधा को कान्हा की मुरली सुकून देती थी!

उतना ही सुकून जितना कहीं बाहर से आकर बिना किसी कारण मम्मी-मम्मी चिल्लाना!

उतना ही सुकून जितना एक कान्हा प्रेमी को वृन्दावन जाने पर!

उतना हु सुकून जितना किसी अपने से काफी लम्बे अंतराल के बाद मुलाक़ात होने पर!

फ़िलहाल मैं भी इतना ही सुकून पा रहा हूँ लिखने के बाद!


©Shivam Pandit #_shivvaam_

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रात

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आज मैं अपने बारे में बताता हूँ

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