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आज मैं अपने बारे में बताता हूँ

कितने लोग कहते होंगे ना कि मैं सब समझता हूँ, कितने लोग कहते होंगे ना कि सब जानता हूँ मैं, कितने लोग कहते होंगे ना कि मैं सब जैसा नहीं हूँ, आज मैं तुम्हें अपने बारे में बताता हूँ मैं सब कुछ नहीं समझता हाँ, पर समझने का प्रयास करता हूँ कि वो सब समझ सकूँ जो समझने जैसा है।। मैं सब कुछ नहीं जानता मैं नहीं जानता किसी को रोकना मैं नहीं जानता रूठे हुए को मनाना मैं नहीं जानता मन के भाव व्यक्त करना मैं नहीं जानता दुःखी को उसके दुःखों से निकलना।। मैं सब जैसा ही हूँ मैं रोज़ गलतियाँ करता हूँ और करता हूँ उन्हें ना दोहराने का भरसक प्रयास क्योंकि ये ही सिखाती हैं कि फिर से क्या नहीं करना है तो कैसे प्रयास करना छोड़ दूँ मैं...!!

रात

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रात के 2 बजने को हैं और मैं सोने की बजाय छत पर मुंडेर पर पैर लटका कर बैठा हूँ। रेलवे स्टेशन भी घर के काफ़ी पास में है तो ट्रैन की आवाज़ें आ रही हैं। कहीं दूर किसी गली में कुत्ते के भौकने की आवाज़ आ रही हैं। शायद पास में ही किसी के यहां अखण्ड रामायण पाठ हो रहा है मगर इन सबसे अलग और सुकून देने वाली ठंडी और शांत हवा भी चल रही है जो शरीर को उसके ठंडे होने का एहसास करा रही है, और मैं भी महसूस कर रहा हूँ। मेरे चारों तरफ बस हल्की सी रोशनी है मैं अक्सर आधी रात को अपनी छत पर आकर बैठ जाता हूँ और खाली मन के साथ बैठा रहता हूँ। ना कुछ सोचता हूँ ऐसा जो मुझे परेशान करे बस ठंडी हवा को अपने अंदर निकलता रहता हूँ और ऐसा करने से कुछ टाइम के लिए ही सही पर हाँ इससे मुझे सुकून मिलता है। चलिए अब में छत से नीचे जा रहा हूँ। नींद तो अभी आएगी नहीं पर फ़िर भी सोने का प्रयास करूँगा और आखिर में सो जाऊंगा। © - शिवम

बहुत मन है छोटा हो जाऊँ

माँ के आंचल में छुप जाऊँ, कोई न ले गोदी तो मचल जाऊँ, गली में आये कुल्फ़ी वाला, कुल्फ़ी लेने को उसे रुकने को कह आऊँ, माँ का दूध पीऊं और माँ की गोद में ही सो जाऊँ, बहुत मन है छोटा हो जाऊँ ।। माँ नहाने को बुलाये और मैं पूरे घर में दौड़ लगाऊँ, नींद से जगने पर माँ को न  पाकर खूब ज़ोर से रोऊँ, न मिलने पर मनपसंद चीज़ ज़मीन पर लोटक-पीटा खाऊँ, बहुत मन है छोटा हो जाऊँ।। पापा के साथ दुकान पर ये चाहिए हाथ रखकर बताऊँ, सीटी वाली चप्पल पहन खूब इठलाऊँ, महमान आने पर घर में छुप जाऊँ, बहुत मन है छोटा हो जाऊँ।।                ©-शिvam

श्रीकृष्ण तो श्रीकृष्ण हैं

श्रीकृष्ण तो श्रीकृष्ण हैं  श्रीकृष्ण नटखट है, श्रीकृष्ण चोर भी हैं, श्रीकृष्ण प्रेम हैं, श्रीकृष्ण मित्र हैं, श्रीकृष्ण सारथी है तो, श्रीकृष्ण भाई भी हैं, श्रीकृष्ण गुरु है, कृष्णा तारक है, कृष्णा राधा के हैं सश्रीकृष्ण मीरा के भी हैं श्रीकृष्ण आपके भी हैं श्रीकृष्ण मेरे भी हैं श्रीकृष्ण हम सबके हैं कृष्ण तो कृष्ण है -Shivam

बेरोजगार हूँ साहब

सवाल ये हैं कि- ये सादा हुलिया खाली जेब बढ़ी हुई दाढ़ी उदास चेहरा माथे पर सिकन आंखों में आश जेहन में बहुत से सवाल लिए क्यों घूमते हो? जवाब- बेरोजगार हूँ साहब यही सब कमाया है -शिvam☺️ ©Shivam

लिखना सुकून देता है मुझे

कभी कभी सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति भी कितना नकरात्मक हो जाता है ये आज मैंने महसूस किया! जब  आपको समझने वाला हो ही न और ना ही समझाने वाला लेकिन ऐसे समय पर किसी ऐसे ही  व्यक्ति की जरूरत होती है जो आपको आपको समझाये और आपके बिना कुछ बोले आपके मन की पीड़ा को भी समझ सके पर जब आप ऐसी पीड़ा में होते हो तो कोई नहीं होता क्यूँकी उसका होना और उस वक़्त उस जगह होना मायने रखता है क्यूँकी आप चाहते हो लिपटकर रोना और  बस रोना बिना कुछ बोले बस रोना! काश मेरे पास ऐसा व्यक्ति हर समय और हर उस जगह मौजूद रहें जहाँ मुझे उसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता हो, मुझे उसे कुछ कहने की जरूरत न पड़े वह वो सब समझे जो मैं कहना तो चाहता हूँ  पर कह नहीं पाता हूँ क्यूँकी मुझे कहना नहीं आता और जब मैं कह नही पाता या कोई  नहीं होता उस वक़्त मैं मेरा पसंदीदा काम करता हूँ! मैं उस वक़्त लिखता हूँ वो सब जो मैं किसी से कह नहीं पता या कहना नहीं चाहता! रोने और बहुत सारा दुःख मनाने के बाद मैं फिर से पहले की तरह हो जाता हूँ जैसे कुछ हुआ ही नहीं है इस उम्मीद से की जैसे फिल्मों में अंत में सब ठीक हो जाता है  वास्तविक...

पागल😊

“कितनी देर हो गई तुम्हे यहाँ?” उसने आते ही पूछा. मैंने उसे आगे चलने का इशारा कते हुए कहा “पता नहीं मैं तो ध्यान में मगन था”. क्या? उसने मुड़ कर पूछा तो उसे देख कर मुझे ‘खुबसूरत’ शब्द याद आया और अभी यहीं खड़े होकर उसे कह देने का मन किया की किसी ऐसे ही पल के मैंने लिखा था ‘देखूं तुम्हे और देखता रहूँ/छू लूँ तुम्हे और महकता रहूँ’. पर सब कुछ कह कहाँ पता हूँ मैं. मैं चलते हुए उसके साथ हुआ और कहाँ “इंतजार करना ध्यान करने जैसा ही है इसमें भी आपको आसपास का कुछ नहीं दिखता, बस किसी एक बिंदु पर आंखे टिक जाती है और दिमाग में बस एक बात होती है कि अभी वो दिख जायेगा. मैं तो कहता हूँ की जो ध्यान नहीं लगा पाते उन्हें इंतजार करना चाहिए.” “पागल” उसने कहा और हम जाने कहाँ की तरफ चल पड़े. थोड़ी दूर चलने पर जूस वाला दिखा और उसने उसे पीने के लिए कहा, हम जूस के आने का इंतजार करने लगे. वक्त बहुत ढीठ है, हमेशा उसका उल्टा ही करता है जो इससे कहा गया हो. जब मैं ‘ध्यान’ में था तो ये सो गया था, आलस के मारे इत्ता धीरे हुआ था कि मुझे लग रहा था की कहीं मर तो नही गया. और अभी जब वो पास में बैठी है तो जैसे इसके पीछे कुत्ते पड़ ग...